38 Part
54 times read
1 Liked
साँझ-10 / जगदीश गुप्त ऊषा के स्िमत-िइंिगत की, गति से हिल उठीं हिलोरें। किरनों के अनुशासन में, सन गई जलद की कोरें।।१३६।। मेरे प्रसुप्त पौरूष में, तुम प्रकृति बने मुसकाये। जग ...